शिव जी के प्रिय सावन माह का माहात्म्य और सभी शंकाओं का समाधान
पांच सोमवार के साथ आ रहा है सावन, जानिए सावन का रहस्य पंडित पुरूषोतम सती से
चन्द्र मास के अनुसार, भगवान शिव का प्रिय मास सावन 6 जुलाई से शुरू हो गया है। इस बार सावन माह में 5 सोमवार होंगे।
ज्यादातर भू भाग में चन्द्र मास से ही महीनों की गणना की जाती है जबकि उत्तराखंड, नेपाल आदि भू भाग में सौर मास के अनुसार महीनों का निर्धारण किया जाता है।
चन्द्र मास के अनुसार सावन, 6 जुलाई 2020 को श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ हुआ। इस बार सावन माह में 5 सोमवार प्राप्त होंगें और 3 अगस्त 2020 दिन सोमवार श्रावण पूर्णिमा रक्षा बन्धन के दिन सावन मास का विश्राम होगा।
उत्तराखंड की परम्परा अनुसार 16 जुलाई 2020, कर्क संक्रान्ति जब भगवान सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करते हैं, सावन प्रारंभ होगा। उत्तराखंड में कर्क सक्रांति को हरेला के नाम से भी जाना जाता है इस दिन पेड़ पौधे भी लगाए जाते हैं। 14 अगस्त शुक्रवार को सिंह संक्रान्ति (घी सक्रांति) के दिन सावन मास का विश्राम होगा।
सावन मास में भगवान शंकर जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। भगवान शंकर की पूजा अपने घर में और शिवालय में करना श्रेष्ठ होता है। घर में, मिट्टी से बने पार्थिव शिवलिंग या नर्मदेश्वर शिवलिंग में पूजन कर सकते हैं।
भगवान शिव सबसे शीघ्र फल देने वाले माने जाते हैं और श्रद्धा पूर्वक रुद्राभिषेक करने से परिवार के सारे कष्ट दूर होते है और सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

सावन के विशेष महत्व का पौराणिक कारण:
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि “जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से पर्वतराज और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद से ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया”।
सावन के विशेष महत्व के संदर्भ में कुछ और कारण:
- मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
- भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
- इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की और विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान नीलकंठ में रहे थे, इसीलिए ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव का विशेष महत्व है जहां लोग गंगा नदी ने पानी लेे जा कर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। यहीं से कावड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है जिसमें नदी विशेष से पानी ला कर अपने अपने शिव मंदिरों में जलाभिषेक किया जाता है।
- ‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
- देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
महादेव का आशीर्वाद सदैव बना रहे।
पंडित पुरूषोतम सती
A-1603, अरिहंत अम्बर
श्री बद्रीनाथ ज्योतिष केन्द्र (Astro Badri)
मोबाइल- 8860321113


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