रक्षाबंधन का पौराणिक महत्व

3 अगस्त 2020 सोमवार, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हम लोग पावन रक्षाबंधन पर्व के रूप में जानते हैं और इसको श्रावणी उपाकर्म भी कहा जाता है जिसमें जो लोग जनेऊ धारण करते हैं वो जनेऊ का पूजन करके नए जनेऊ को धारण करते हैं।
3 अगस्त 2020 को रक्षाबंधन का मुहूर्त
3 अगस्त को प्रातः 9 बजकर 28 मिनट तक भद्रा है इसलिए शुभमुहूर्त प्रातः 9 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ होगा और रात्रि 9 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
3 अगस्त को पूर्णमासी रात्रि 9 बजकर 31 मिनट तक रहेगी अतः पूर्णमासी का व्रत भी इसी दिन होगा।
कई लोगो ने पूछा है कि उस दिन सावन का सोमवार भी है तो पूर्णमासी का व्रत कर सकते हैं या नहीं। जो लोग व्रत कर रहे हैं, वो अपना व्रत पूर्ण करें। सोमवार और पूर्णिमा का व्रत एक साथ में है।
रक्षाबंधन का पौराणिक महत्व
कई लोगों लो यह संदेह रहता है कि रक्षाबंधन का पर्व आधुनिक है या पौराणिक। इस संदेह निवारण के लिए
रक्षाबंधन के विषय में पुराणों में अनेक कथाएं आती हैं जिसमें से कुछ आपको बताता हूँ:-
भविष्य पुराण की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धरती की रक्षा के लिए देवताओं और असुरों में 12 साल तक युद्ध चला लेकिन देवताओं को विजय नहीं मिली। तब देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र की पत्नी शची को श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर रक्षासूत्र बनाने के लिए कहा। इंद्राणी का बनाया वह रक्षा सूत्र वृहस्पति ने इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा और फिर देवताओं ने असुरों को पराजित कर विजय हासिल की।
भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों में बांधते हुए निम्नलिखित मंत्र बोला (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)-
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे राखी! तुम अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।”

वामन अवतार कथा
एक बार भगवान विष्णु असुरों के राजा बलि के दान धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि से वरदान मांगने के लिए कहा। तब बलि ने उनसे पाताल लोक में बसने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु के पाताल लोक चले जाने से माता लक्ष्मी और सभी देवता बहुत चिंतित हुए। तब मां ने लक्ष्मी गरीब स्त्री के वेश में पाताल जाकर बलि को राखी बांधा और भगवान विष्णु को वहां से वापस ले जाने का वचन मांगा। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। तभी से रक्षाबंधन मनाया जाता है।
द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा
महाभारत काल में कृष्ण और द्रोपदी को भाई बहन माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिशुपाल का वध करते समय भगवान कृष्ण की तर्जनी उंगली कट गयी थी। तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांधी थी। उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था। तभी से रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। कृष्ण ने एक भाई की जिम्मेदारी निभाते हुए चीर हरण के समय द्रोपदी की रक्षा की थी।
विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपाकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है।
उत्तराखंड में रक्षा बंधन का पर्व ब्राह्मण के द्वारा अपने यजमान के यहाँ जाकर अपने घर में पूजा की गई रक्षा सूत्र को यजमानों को सपरिवार बाधा जाता है एवं नया जनेऊ पहनने को दिया जाता है और यह सिलसिला श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन तक गाँव-गाँव अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बाँधकर मनाया जाता है।
पंडित पुरूषोतम सती
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