उत्तराखंड में सावन और प्रकृति प्रेम का हरेला पर्व
13 Jul, 2020
उत्तराखंड का पारंपरिक त्यौहार हरेला, 16 जुलाई 2020 को है। यह त्यौहार हिमालय पर्वत की तलहटी में बसे उत्तराखंड निवासियों का प्रकृति के प्रति प्रेम और जागरूकता को भी दर्शाता है कि हमको संतुलित वातावरण के लिए वृक्षारोपण करते रहना चाहिए।
सौर मास के अनुसार कर्क संक्रांति से पवित्र सावन मास का प्रारंभ होता है और भगवान सूर्य का दक्षिणायान का समय प्रारंभ होता है। कर्क संक्रांति से मकर संक्रांति तक के काल को दक्षिणायाण कहा जाता है और शास्त्रों में इसे देवताओं का रात्रि और पितरों का दिन का समय माना जाता है। हमारे 6 महीने के काल को देवताओं की 1 रात्रि और मकरसंक्रांति से कर्क संक्रांति, जिसे उत्तरायण कहा जाता है हमारे उस 6 मास के काल को देवताओं का 1 दिन कहा गया है, जिसे एक अहोरात्रि कहा जाता है।
ठीक आश्विन कृष्ण पक्ष में देवताओं की मध्यरात्रि और पितरों का मध्य दोपहर काल का समय होता है, इसलिए इस पक्ष को पित्र पक्ष कहा जाता है, जहां हम अपने पूर्वजों को अन्न और जल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करते हैं।
इस 6 महीने के काल में चूड़ाकर्म, गृहप्रवेश और भूमिपूजन इत्यादि शुभ कर्मो का शास्त्रों में निषेध कहा गया है। विवाह इत्यादि कुछ संस्कार देव उठावनी एकादशी से प्रारंभ हो जाते हैं। अनुष्ठान इत्यादि पूजा पाठ कभी भी किया जा सकता है।
कर्क संक्रांति के पर्व पर पतझड़ वाले पौधों को छोड़कर सभी प्रकार के वृक्षों को लगाये जाने का विधान है, जिससे हमारी प्रकृति सदा हरीभरी बनी रहे जब प्रकृति हरि भरी होती है तो मनुष्य का जीवन भी उसी प्रकार से ऊर्जावान बना रहता है।
यह त्यौहार कुमाऊँ मंडल में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और गढ़वाल मंडल में लोग अपने खेतों में या अन्य जगहों पर वृक्षारोपण करते हैं।
हरेला विशेष पूजा विधि:
हरेला के लिए पूजा स्थान में किसी जगह या छोटी डलियों में मिट्टी बिछा कर सात प्रकार के बीज (सप्त-धान्य)जैसे- गेंहूं, जौ, मूंग, उड़द, भुट्टा, गहत, सरसों आदि बोते हैं और ऊपर से किसी चीज से ढक देते हैं ताकि नमी बनी रहे। नौ दिनों तक उसमें गुनगुना जल और दूध को हल्दी में मिलाकर डालते हैं। बीज अंकुरित हो कर बढ़ने लगते हैं। हर दिन सांकेतिक रूप से इनकी गुड़ाई भी की जाती है और हरेले के दिन कटाई की जाती है।

यह सब देव कार्य घर के बड़े बुज़ुर्ग या पंडित करते हैं। हरेला जितना बढ़िया उगता है उसको उतना ही शुभ और समृद्धि वाला वर्ष माना जाता है।
हरेला के दिन इष्ट देवी देवताओं की पूजा और आरती की जाती है। विभिन्न प्रकार के नैवेद्य अर्पित किया जाता है और देवताओं को हरेला अर्पित करने के बाद आशीर्वाद स्वरूप अपने कान और सर में रखा जाता है। परिवार का कोई सदस्य अगर दूर हो तो पहले उसको भी पत्र के द्वारा हरेला भेजा जाता था। घर की चौखट पर दोनों तरफ और ऊपर, गोबर से हरेला के तिनकों को लगाया जाता है।
इस लोक त्यौहार और परम्परा का संबंध उर्वरता, खुशहाली, नव जीवन और विकास से जुड़ा है। कुछ लोग मानते हैं कि सात तरह के बीज सात जन्मों के प्रतीक हैं। कर्क संक्रांति हमारी 6 ऋतुओं में वर्षा ऋतु का समय होता है, इसमें हम लोग जो भी पेड़ पौधे लगाते हैं उनको प्रकृति के द्वारा ही वर्षा का जल पर्याप्त मिल जाता है जिसे पौधे आसानी से लग जाते है
इसी लिए इस दिन पेड़ पौधे लगाए जाते हैं।
वृक्षारोपण के महत्व को रेखांकित करते हुए, मत्स्य पुराण में एक वृक्ष को 10 पुत्रों के समान बताया गया है।
“दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः।
दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो द्रुमः।”
हरेला से एक दिन पूर्व भगवान शिव और माता सती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है जिसमें मिट्टी के शिव, गौरी बनाए जाते हैं जिनको स्थानीय भाषा में डीकर कहा जाता है। डिकरों को अलग अलग रंगों से सजाया जाता है।
कहीं कहीं पर हरेला के दिन बैलों को कार्य से मुक्ति भी दी जाती है। इस दिन से कैलाश भूमि उत्तराखंड में सावन का शुभारंभ होता है और लोग बड़े भक्ति भाव से रुद्राभिषेक कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
पंडित पुरूषोतम सती
A-1603, अरिहंत अम्बर
श्री बद्रीनाथ ज्योतिष केन्द्र (Astro Badri)
मोबाइल- 8860321113
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